बिहार के गया से एक बड़ी खबर आई है। राज्य निर्वाचन आयोग की एक विशेष जांच समिति ने गया नगर निगम के मेयर बिरेन्द्र कुमार उर्फ गणेश पासवान की जाति को लेकर एक अहम निर्णय सुनाया है। समिति ने श्री पासवान द्वारा अनुसूचित जाति (दुसाध) होने के दावे को सर्वसम्मत रूप से खारिज कर दिया है। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा इसकी जांच अपराध अनुसंधान विभाग से कराई गई, जांच में सामने आए तथ्यों के आधार पर जांच कर रही टीम ने यह निर्णय दिया कि गया के मेयर दुसाध जाति से नहीं आते हैं। इसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने इनकी जाति को खारिज कर दिया। जिसकी जानकारी राज्य निर्वाचन आयोग सहित सभी संबंधित पदाधिकारी तथा पक्षों को दे दी गई। जिसके आधार पर अब गया के जिला पदाधिकारी को इस आदेश के आलोक में समुचित कार्रवाई करने के लिए निर्देश दिया गया है। बोधगया के पूर्व विधायक श्यामदेव पासवान जो कि इस मामले में पक्षकार हैं ने आदेश की एक प्रति सलंग्न करते अपने आवेदन में मेयर को निगम के किसी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश के आलोक में शीघ्र कार्रवाई करने की मांग की है। इसी आशय का पत्र उन्होंने नगर निगम के आयुक्त को दिया है।
बुधवार को आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में उक्त बातें डॉ श्यामदेव पासवान ने कही।
उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति के हक़ को लेकर उनकी लड़ाई का परिणाम है कि न्याय मिला है। उन्होंने कहा कि जिस पद पर एक अनुसूचित जाति के किसी व्यक्ति को पदासीन होना चाहिए था लेकिन किसी गैर के हाथ में यह पद है। उन्होंने बताया कि जितनी जल्द इनके निर्वाचन की मान्यता को रद्द कर दिया जाए वह अनुसूचित जाति के लोगों के हक़ में अच्छा रहेगा। प्रेस कांफ्रेंस में अखिल भारतीय भारतीय दुसाध उत्थान संघ के राजद नेता आकाश कुमार उर्फ भंटा पासवान, पार्षद राहुल कुमार, पूर्व मेयर सोनी देवी के प्रतिनिधि विक्की शर्मा आदि उपस्थित थे।
पृष्ठभूमि:
गत वर्ष पूर्व विधायक श्यामदेव पासवान द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग में एक वाद 39/2023 दायर किया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बिरेन्द्र कुमार उर्फ गणेश पासवान गलत जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नगर निगम मेयर का पद प्राप्त किया है। इस शिकायत पर विचार करते हुए निर्वाचन आयोग ने अपराध अनुसंधान विभाग से मेयर की जाति की जांच करवाई।
जांच के निष्कर्ष:
विभिन्न स्तरों पर विस्तृत जांच के बाद अपराध अनुसंधान विभाग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वर्ष 1980 से पहले बिरेन्द्र कुमार के पूर्वजों की जाति सभी दस्तावेजों में बंगाली दर्ज थी। लेकिन 1980 के बाद असंगत रूप से उनकी जाति दुसाध(पासवान) दर्ज की जाने लगी। विभाग ने कहा कि इस बदलाव के लिए श्री पासवान ने कोई संतोषजनक कारण नहीं बताया।
राज्य निर्वाचन आयोग की जांच समिति ने मामले पर गंभीरता से विचार किया। समिति ने दस्तावेजी साक्ष्यों और श्री पासवान के बचाव को देखने के बाद अपराध अनुसंधान विभाग के निष्कर्षों से सहमति व्यक्त की। आयोग ने फैसला सुनाते हुए कहा कि श्री बिरेन्द्र कुमार उर्फ गणेश पासवान की जाति वास्तव में बंगाली है, न कि दुसाध (अनुसूचित जाति)।
महत्वपूर्ण तथ्य:
जांच में सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज एक बख्शीशनामा (गिफ्ट डीड) पाया गया, जिसमें श्री पासवान के दादा हनुमान प्रसाद सरकार ने अपने पुत्र बाला सरकार (श्री पासवान के पिता) की जाति बंगाली लिखी थी। इसके अलावा 1914-15 के म्युनिसिपल सर्वे खतियान और 1978-79 के नगर निगम के डिमांड रजिस्टर में भी उनके पूर्वजों की जाति बंगाली दर्ज थी।
निर्णय का महत्व:
यह फैसला गया नगर निगम मेयर पद के लिए अहम है, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। आयोग के इस निर्णय के बाद श्री बिरेन्द्र कुमार उर्फ गणेश पासवान के मेयर बने रहने पर संशय उत्पन्न हो गया है। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि आयोग उनके खिलाफ क्या कार्रवाई करेगा।
18 को है राज्य निर्वाचन आयोग में सुनवाई
वहीं इस संबंध में गया नगर निगम के मेयर वीरेंद्र कुमार उर्फ गणेश पासवान ने कहा कि राजनीति से प्रेरित है। 18 जून को राज्य निर्वाचन आयोग में सुनवाई है। जाति से संबंधित सारा तथ्य मेरे पक्ष में है। विरोधी लोग ख्याली पुलाव पका रहे हैं। फैसला मेरे पक्ष में आएगा।
जाति प्रमाण पत्र धारण करने को लेकर यह मामला काफी जटिल साबित हुआ। लेकिन जांच समिति के गंभीर अध्ययन और निष्पक्ष निर्णय से इस मामले में बहुत हद तक स्पष्टता आई है। हालांकि मामले की अंतिम भूमिका और उसके निहितार्थ अभी स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन निर्वाचन आयोग के इस फैसले से जातीय पहचान और आरक्षण से जुड़े कई सवाल उठते हैं।