✍️देवब्रत मंडल
ऐतिहासिक गया धाम चारों ओर पहाड़ से घिरा हुआ शहर है और शहर के उतर में काफी पुराना धार्मिक रामशिला पहाड़ है।
भगवान श्रीराम के गया आगमन और इस स्थान पर आने के बाद यह पहाड़ रामशिला पहाड़ के नाम से जाना लगा हैं।
आइए जानते हैं कहां है यह पहाड़ और इसकी विशेषताएं
विष्णुपद मंदिर से लगभग 8 किमी उतर फल्गु नदी के किनारे रामशिला पहाड़ है। पहाड़ के नीचे सामने रामकुण्ड नामक सरोवर है और इस सरोवर के दक्षिण एक शिव मंदिर है। रामशिला पहाड़ के ऊपर लगभग 20 सीढ़ी चढ़ने के बाद भगवान श्रीराम मंदिर है. यहा भगवान् के चरण-चिन्ह बना है। मंदिर के दक्षिण में बरामदे में कुछ प्राचीन मूर्तियां है।
मंदिर में स्फटिक का बना अदभुत शिवलिंग
रामशिला पहाड़ के तलहट्टी स्थापित मंदिर में, जहां देश का तीसरा स्फटिक शिवलिंग विराजमान है। पहला स्फटिक शिवलिंग रामेश्वरम में, दूसरा जम्मू के रघुनाथ मंदिर और तीसरा इस मंदिर में है। इस स्फटिक शिवलिंग की खास बात यह है कि इसके पास आरती दिखाने पर माता पार्वती व भगवान शिव के दिव्य नेत्रों का भक्त दर्शन करते हैं। मंदिर में करीब एक फीट ऊंचे और इतना ही वृत्ताकार शिवलिंग जो काफी दुर्लभ है। स्फटिक शिवलिंग के अंदर नाग की आकृति अभी तक रहस्य और विस्मयकारी बनी हुई है।स्फटिक या क्वार्ट्ज (Quartz) यह रेत एवं ग्रेनाइट का मुख्य घटक है। पृथ्वी के धरातल पर क्वार्ट्ज दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला खनिज है।
एक मूंगा पत्थर से है निर्मित गणेश की प्रतिमा
रामशिला पहाड़ी के तलहटी में बने मंदिर में भगवान श्री गणेशजी के मूंगा की पांच फीट उंचा भव्य प्रतिमा है। यह बहुत ही दुर्लभ मूर्ति है और भारत वर्ष में बहुत ही कम देखने को मिलता है और बहुत ही कीमती है। यह प्रतिमा एक ही मूंगे के पत्थर से निर्मित है। श्रीगणेश जी के सूंढ़ दक्षिणविमुखी है। जो महाराष्ट्र और जम्मू के बाद यही देखने को मिलेंगे।
भगवान् राम का यहां हुआ था आगमन
अपने पिता दशरथ जी की मृत्यु के बाद भगवान राम ने फल्गु तट पर पिण्डदान किया और उसके बाद यहाँ आ कर रामशिला पहाड़ के ठीक सामने सड़क के पार रामकुंड में भगवान राम ने स्नान कर रामशिला वेदी पर पिता राजा दशरथ को पिंड दिया था। भगवान् राम रामशिला पहाड़ के शिखर पर ऋणमोचन-पापमोचन शिवलिंग की स्थापना की। इसे सशक्त शैव केन्द्र के रूप में माना जाता है।जहाँ पर आज के समय भी पिंडदानी लोग अपने पूर्वज के पिंड दान करते है। भगवान राम ने लक्ष्मण और सीता के साथ गया धाम के उत्तरी सिरे पर अवस्थित पर्वत के शिखर पर विश्राम किया था। शिखर पर उन्होंने रामेश्वर/पातालेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना और पूजन किया।तभी से इस पर्वत का नामकरण रामशिला कर दिया गया। यहां पिंडदान करने से पूर्वज सीधे स्वर्गलोक जाते हैं। रामकुंड में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है।
रामेश्वर/पातालेश्वर महादेव मंदिर
रामशिला पहाड़ के उपर उसके आस पास बहुत पुराने कई मूर्ति स्थापित है और उसमें कुछ नए भी है। यह सन 1041 में मुख्यतः बना है। उसके बाद समय समय पर मंदिर में पुनरुदार और मरम्मत का कार्य कई बार हुआ है। रामशिला पहाड़ पर पातालेश्वर महादेव मंदिर से गया शहर का सुन्दर एवं मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है।रामशिला एक प्रसिद्ध धर्म तीर्थ है.रामशिला पहाड़ की ऊंचाई 715 फीट है। पहाड़ पर बने पातालेश्वर शिव और राम लक्ष्मण मंदिर दर्शनीय है। साथ ही वासुकीनाथ भी अपने अलौकिक रूप में नजर आते है. यहां पूजा-अर्चना करने से काल सर्प और असामयिक मृत्यु का भय दूर हो जाता है।
मंदिर निर्माण का इतिहास और निर्माण
इस शिव मंदिर का निर्माण टिकारी महाराज गोपाल शरण सिंह के पिता बाबु अम्बिका शरण सिंह ने टिकारी राज के Court of Wards के समय, गया शहर के पहसी में प्रवास के दौरान, सन 1886 ई. में इसका निर्माण कराया था। उन्होंने रामशिला पहाड़ पर पातालेश्वर महादेव मंदिर जाने के लिए सीढियों का पुनरुद्धार और मरम्मत भी करवाई।
मंदिर में शीतलता
शीतलता का प्रतीक है स्फटिक शिवलिंग, सावन में लगती है भीड़ रामशिला स्थित शिव मंदिर में स्थापित स्फटिक शिवलिंग शीतलता का प्रतीक है। इस शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से मन को चंद्रमा के समान शीतलता मिलती है. इसके अलावा बाबा भोलनाथ भक्तों के हर प्रकार के कष्ट को दूर कर देते हैं।
मनोकामना पूर्ण होना, शुक्र ग्रह का मिटता है संताप
गया के उत्तरी क्षेत्र के रामशिला पहाड़ की तलहटी में स्थापित स्फटिक के शिवलिंग की पूजा-अर्चना का खास महत्व है। यहां पूरे साल भक्तों की भीड़ लगी रहती है। स्फटिक भी एक तरह का रत्न है जो शुक्र ग्रह के लिए है. ‘शुक्र’ ‘कामदेव’ माने जाते हैं। जिनकी पूजा-अर्चना करने से मन व शरीर दोनों की कामना पूरी होती है। कोई मनुष्य यदि स्फटिक के शिवलिंग की पूजा, जलाभिषेक तथा आराधना समर्पित भाव से करे तो शुक्र ग्रह का संताप मिट जाता है।
सावन महिना में सर्वाधिक होती है भीड़
श्रावण के महीने में हर शिवालय में भक्तों की भीड़ होती है लेकिन इस मंदिर में श्रावण में शिव की विशेष पूजा अर्चना का एक अलग महत्व है।
हर माह में होते हैं महाशिवरात्रि पर्व
सालभर में 12 शिवरात्रि व्रत किए जाते हैं लेकिन इनमें फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी महाशिवरात्रि पर्व बहुत खास है। महाशिवरात्रि पर्व के दिन मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना करने के लिए काफी संख्या में भक्तगण आते है, इस दिन यहाँ बहुत संख्या में लोग शिव-पार्वती के विवाह में सम्मिलित होने के लिए मंदिर परिसर में आते है, मेला लगता है और सम्पूर्ण मंदिर परिसर भक्तिमय हो जाता है।
जानें स्फटिक शिवलिंग के बारे में—
स्फटिक शिवलिंग सुख-शांति बनाए रखता है और आपको जीवन में होने वाले बुरे प्रभावों से बचाता है. जो भी भक्त महाशिवरात्रि के दिन सच्चे मन से स्फटिक शिवलिंग की पूजा करता है उसकी भगवान शिव स्वयं रक्षा करते हैं। स्फटिक शिवलिंग की ऊर्जा में इतनी शक्ति होती है कि मात्र इसकी पूजा करने से आपके मन शुद्ध हो जाता है। जो भी व्यक्ति पूजन स्थल में स्फटिक शिवलिंग की पूजा करता है उसे जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती हैं। यहां के पुजारी दीप नारायण पांडेय बताते हैं कि रामशिला स्वयं में एक संपूर्ण तीर्थ स्थल है। शिव और राम(विष्णु) के साथ साथ विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा करने के साथ पिण्डदान के लिए सालों भर भक्तगण और श्रद्धालु आते रहते हैं।
मंदिर जाने के लिए क्या करना होगा
गया-पटना सड़क के सटे इस मंदिर में जाने के लिए गया जंक्शन से आने वाले श्रद्धालु इस स्थल पर ऑटो के जरिए टावर चौक, किरानी घाट, पंचायती अखाड़ा होते हुए रामशिला पर्वत के पास पहुंच सकते हैं। इसके अलावा स्टेशन से बागेश्वरी मंदिर, छोटकी नवादा होते हुए भी इस स्थल पर पहुंचा जा सकता है।