ओजस्विनी द्वारा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवनचरित पर विचारगोष्ठी का आयोजन

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हमें राम के साकार और निराकार, दोनों रूपों को जानने की है आवश्यकता

गया। अंतरराष्ट्रीय हिन्दू परिषद की सहयोगी शाखा ओजस्विनी द्वारा जिलाध्यक्षा डॉ. कुमारी रश्मि प्रियदर्शनी की अध्यक्षता में “जय, जय कौसल्या-नंदन, दशरथ के तनय, सिया के राम” शीर्षक के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवनचरित पर अॉनलाइन विचारगोष्ठी का आयोजन किया गया। विचारगोष्ठी में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी के उन अनुकरणीय गुण तथा कर्मों पर प्रकाश डाला गया, जिनके कारण वे युग-युगांतर से सबके आराध्य हैं। कार्यक्रम का शुभारंभ ओजस्विनी की गया जिलामंत्री अमीषा भारती द्वारा प्रस्तुत “श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं” भजन की सुमधुर प्रस्तुति से हुआ। कार्यक्रम की संचालिका डॉ रश्मि प्रियदर्शनी ने अयोध्या में नवनिर्मित चिर-प्रतीक्षित श्री राममंदिर को संपूर्ण भारतवर्ष के लिए अपार हर्ष एवं गौरव का विषय बतलाया।

अयोध्या में नवनिर्मित श्रीराम मंदिर संपूर्ण भारतवर्ष के लिए अपार हर्ष एवं गौरव का विषय है

डॉ रश्मि

ओजस्विनी अध्यक्षा डॉ रश्मि ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र हमारे भारतवर्ष की आर्य संस्कृति के मूल स्तंभ हैं, जिन्होंने उपदेश से उदाहरण को अधिक महत्व दिया। एक आदर्श पुत्र, शिष्य, भाई, मित्र, प्रेमी, पति, पिता, राजा अथवा, मनुष्य में जिन मानक गुणों की आवश्यकता होती है, वे सारे गुण कौसल्या-नंदन श्रीराम में एक साथ विद्यमान हैं। दशरथ नंदन श्रीराम के इन्हीं प्रजापालक गुणों के कारण तो उन्हें भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। अपने इन्हीं अलौकिक गुणों के कारण युग-युगांतर से श्री राम सबके आराध्य हैं। श्रीराम का जीवनचरित वचनबद्धता तथा वचन पालन की पराकाष्ठा है। वे त्याग, समर्पण, विनम्रता, प्रेम, क्षमा, दया, करुणा के परमस्रोत हैं। श्रीराम ने माता, पिता एवं गुरु को अपने जीवन में सर्वोपरि स्थान दिया। अपनी धर्मपत्नी देवी सीता के साथ संसार की सभी नारियों के प्रति उनके हृदय में अगाध सम्मान का भाव था। उनके मन में किसी के प्रति भी भेदभाव की भावना नहीं थी। अहंकारी लंकापति रावण को पराजित करके उन्होंने सारे विश्व को विनम्र तथा शीलवान होने की प्रेरणा दी। श्री राम पर रचित अपनी कविता “वो हैं राम” की पंक्ति, “भारतीय संस्कृति के जो प्रतीक हैं अनुपम, उन्हें प्रणाम। जय-जय कौसल्या-नंदन, दशरथ के तनय, सिया के राम” प्रस्तुत करते हुए डॉ रश्मि ने कहा कि आध्यात्मिक उत्थान हेतु हमें राम के साकार और निराकार दोनों रूपों, का ज्ञान तथा आभास होना चाहिए। निराकार राम ब्रह्मांड के कण-कण में बसते हैं।
कार्यक्रम में अमीषा भारती, हर्षिता मिश्रा, लवली कुमारी, मुस्कान सिन्हा, जूही कुमारी, साक्षी सिन्हा, अन्या, प्रियंका आदि ने भी अपने विचार रखे।

वचनबद्धता एवं वचन पालन की पराकाष्ठा है श्रीराम का जीवनचरित

डॉ. रश्मि

ओजस्विनी की जिलामंत्री अमीषा भारती ने अपनी हिन्दू संस्कृति और सभ्यता को अक्षुण्ण बनाये रखने हेतु श्रीराम के पदचिन्हों पर चलने की जरूरत पर जोर डाला। तो वहीं हर्षिता मिश्रा ने कहा कि श्री राम के विद्यार्थी जीवन से गुरुभक्ति, एकाग्र अध्ययन तथा अनुशासन की प्रेरणा मिलती है। जूही ने कहा कि श्री राम ने हमें नैतिक तथा मानवीय मूल्यों के पथ पर चलना सिखलाया। अन्या ने श्री राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के मद्देनजर ओजस्विनी द्वारा आयोजित इस विचारगोष्ठी को अत्यंत ज्ञानवर्द्धक ठहराया। वहीं मुस्कान सिन्हा ने कहा कि अयोध्या में श्री राम मंदिर के निर्माण से पूरे भारतवर्ष का सपना साकार हुआ है। साक्षी सिन्हा ने श्री राम को एक आदर्श तथा प्रजापालक राजा बताया। 22 जनवरी को अयोध्या में आयोजित होने जा रहे श्री राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर शशिकांत मिश्र, राम बारीक, शिव लाल टइया, मणिलाल बारीक, रजनी त्यागी, शिल्पा साहनी, प्यारचन्द कुमार मोहन, दुर्गेश नंदिनी, प्रगति मिश्रा व अंतरराष्ट्रीय हिन्दू परिषद के सभी पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने हार्दिक खुशी जतायी है।

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