राजद, जदयू के बीच जनसुराज की उपस्थिति बेलागंज के राजनीतिक तराजू के दोनों पलड़े को किसी एक तरफ झुकने नहीं दे रहा
देवब्रत मंडल

चुनाव में जुबानी जंग का परिणाम जनता तय करती है कि कौन जीतेगा और किसकी हार होगी। गया जिले के दोनों विधानसभा क्षेत्र इमामगंज और बेलागंज में उपचुनाव का क्या फैसला सुनाया जाएगा ये तो 13 नवंबर को मतदान के दिन तय हो जायेगा। इस बीच सत्तापक्ष और विपक्ष के नेताओं के बीच जुबानी जंग में काफी कुछ सुनने को मिल रहे हैं। सोशल मीडिया पर एक से एक नारे, दावे और वादों के कसीदे गढ़े दिखाई दे रहे हैं।
दोनों क्षेत्र की जनता से कहीं अधिक स्थानीय ‘नेताजी’ बेचैन नजर आ रहे हैं। बड़े नेताजी तो कह रहे हैं कि ‘मर जाएंगे लेकिन, अब नहीं…! वहीं एक नेताजी कह रहे हैं कि ‘आगे से कोई गलती नहीं होगी, इसकी गारंटी…! कोई कह रहा है कि ‘एक साल की ही तो बात है, अगले साल जब…! कोई किसी को राजनीति में बच्चा बता रहे हैं तो कोई अमन, चैन व खुशहाली की बात…!
बहरहाल 13 नवंबर को इन दोनों विधानसभा क्षेत्र में मतदान की तिथि तय है। जनता भी इसके लिए तैयार है। जनता नेताओं की जुबानी जंग को सुनने के लिए मजबूर है क्योंकि वे इसके आदी हो चुके हैं और नेताओं की तो यही सबसे बड़ी पूंजी है कि अपनी लोकप्रियता(सत्ता) हासिल करने के लिए कुछ भी कह सकते हैं।
बेलागंज की धरती पर शुरू से ही समाजवादी नेताओं का ही अधिपत्य रहा है। इतिहास इसका साक्षी है लेकिन इस बार यहां चुनावी बयार कुछ दूसरी ही बहती दिखाई दे रही है।
राजद, जदयू के बीच जनसुराज की उपस्थिति बेलागंज के राजनीतिक तराजू के दोनों पलड़े को किसी एक तरफ झुकने नहीं दे रहा है। वहीं इमामगंज चलते हैं तो देखने और सुनने को मिल रहे हैं कि ‘आखिर कब तक लोग परिवारवाद को बर्दाश्त…! तो कुछ लोग कह रहे हैं कि ‘बदलाव करने से आज क्या फायदा? अगले साल ही कुछ ऐसा होता है तो सोचेंगे! यहां हम(से.) और राजद के बीच ही सीधा मुकाबला देखा जा रहा है।
जनसुराज की उपस्थिति यहां उतनी दमदार नहीं नजर नहीं आ रही है जितना कि बेलागंज में। ‘साख पर बट्टा’ लगने को लेकर दोनों चिंतित हैं। एक जगह पूर्व मंत्री जी तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री जी साख दांव पर लगी है। इन दोनों की साख बचाने की जिम्मेवारी जनता के हाथों में है। जिनके एक एक वोट चुनावी जंग के फैसले पर मुहर लगा देगी।