देवब्रत मंडल

पूर्व मध्य रेल का डीडीयू मंडल। जिसके क्षेत्राधिकार में आता है गया जंक्शन। गया जंक्शन भारतीय रेल का एक ऐसा रेलवे स्टेशन हैं। जहां सनातनी सालों भर आते रहते हैं और आते रहते हैं विदेशी सैलानी भी। अन्य संप्रदाय और देश के हरेक हिस्से से यहां लोग आते रहते हैं। कभी पूर्वी रेल का और दानापुर रेल मंडल का अंग हुआ करता था। अब पूर्व मध्य रेल के पंडित दीनदयाल उपाध्याय मंडल का अंग है। यहां से हर दिशा की ट्रेनें चलती है और आती भी हैं। पहले भाप वाले इंजन, बाद में डीज़ल इंजन और अब इलेक्ट्रिक इंजन। अब तो वंदे भारत और अमृत भारत जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं से लैश ट्रेनें गया से और गया होकर चलने लगी है। यानी कि यात्री सुविधाओं में निरंतर गुणात्मक सुधार। लेकिन क्या इतने परिवर्तन के बाद भी यात्री और रेलकर्मियों को वो सुविधाएं मुहैया कराई जा रही है? ये बड़ा सवाल है। आइए डालते हैं उन चीजों पर नजर जो वर्तमान व्यवस्थाओं से जुड़ी हुई हैं।
नंबर एक
करीब ₹400 करोड़ की लागत से गया जंक्शन को एयरपोर्ट जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण करने की तैयारी चल रही है। आने वाले “अच्छे दिनों” के इंतजार के बीच की कहानी कुछ ऐसी है कि आप देख भी रहे होंगे और महसूस भी करते होंगे।

नंबर दो:प्लेटफॉर्म पर आप सुगमता से चल नहीं सकते
गया जंक्शन पर चल रहे विकास कार्यों के कारण यात्री प्लेटफॉर्म पर सुगमतापूर्वक चल नहीं पा रहे हैं। यात्रियों के पैरों में ठेस लगती है। कहीं शेड का आभाव तो कहीं यात्रियों के बैठने के लिए सीट नहीं। ट्रेन के इंतजार में खड़े रहिए या फिर गार्ड(ट्रेन मैनेजर) के बॉक्स पर बैठिए। बारिश और धूप दोनों सहने पड़ रहे हैं।

नंबर टीन:एक प्लेटफॉर्म से दूसरे प्लेटफॉर्म पर जाने में परेशानी
फिलहाल हावड़ा छोर वाले फुट ओवर ब्रिज से आना जाना नहीं हो रहा है। यात्रियों को अन्य प्लेटफॉर्म से प्लेटफॉर्म नंबर 1A,1B,1C पर जाना हो तो उन्हें लंबी दूरी तय करनी पड़ रही है। वहीं, कहीं भी ऐसा साइनबोर्ड (इंडिकेशन) नहीं दिखाई देता है कि यात्री इन तीन प्लेटफॉर्म पर कैसे जाएंगे। दीपावली के एक दिन पहले ओटीए के एक अधिकारी 1/C पर लगी वंदे भारत ट्रेन पकड़ने के लिए आए थे लेकिन उन्हें किधर से इस प्लेटफॉर्म पर जाना सुगम होगा पता नहीं चल पाया। विभागीय चारपहिया वाहन से आए हुए थे। उनके अंगरक्षक गेट नंबर दो से अंदर आ गए थे। ट्रेन खुलने में करीब 12-15 मिनट समय शेष बचे थे। भारत सेवाश्रम कार्यालय के सामने आकर ठिठक से गए तब एक ऑटो चालक ने बताया कि आप लौटकर उसी सड़क से गेट नंबर तीन वाले प्रवेश द्वार से चले जाएं। हड़बड़ी में अधिकारी के वाहन के चालक रिटर्न होते हैं। और भी कई यात्री ऐसे देखने को मिले।

नंबर चार:टिकट बुकिंग काउंटर से दौड़ पड़ते हैं यात्री
प्लेटफॉर्म नंबर 1A,1B और 1C से खुलने वाली नवादा, शेखपुरा, किउल, जमालपुर, रामपुर हाट, भागलपुर, हावड़ा की ट्रेन के यात्री टिकट खरीदने के बाद ट्रेन पकड़ने के लिए दौड़ते दिखाई देते हैं। टिकट खरीदने के बाद तो इन जगहों के लिए जाने वाले यात्रियों को इन प्लेटफॉर्म पर पहुंचने के लिए पहले सीधे सर्कुलेटिंग एरिया में बने मार्ग से उत्तर दिशा की ओर तेजी से भागते हुए देखे जाते हैं लेकिन निर्माण कार्य के कारण रास्ते बंद कर दिए जाने के कारण पुनः यात्रियों को या तो गेट नंबर दो से बाहर निकलना पड़ता है या फिर पितृपक्ष मेला के दौरान बनाए गए होल्डिंग एरिया वाले अस्थायी प्रवेश/निकासी द्वार से प्लेटफॉर्म नंबर एक पर आना पड़ता है। इसके बाद 1ए,1बी या फिर 1सी प्लेटफॉर्म पर जाते हैं।

नंबर पांच:डेल्हा साइड से यात्रियों का कम होता है आना जाना
गया जंक्शन के पश्चिमी भाग को डेल्हा साइड कहा जाता है। इस दिशा से यात्रियों का बहुत कम ही आना जाना होता है। इधर भी टिकट बुकिंग कार्यालय है लेकिन आरक्षण का टिकट लेने के लिए फिलहाल कोई व्यवस्था नहीं की जा सकी है। वहीं अभी तक इस दिशा से ट्रेन पकड़ने वाले यात्रियों की संख्या इसलिए कम है कि जिला मुख्यालय या मुख्य बाजार, कचहरी आदि कई महत्वपूर्ण कार्यालय पूरब की दिशा में ही है। इसलिए अधिकतर यात्री स्टेशन रोड या फिर बाटा मोड से होते हुए आरएमएस व पार्सल कार्यालय के सामने वाली सड़क मार्ग से गया जंक्शन पहुंचते हैं। जहां सड़क पर ही ऑटो रिक्शा चालक अपने वाहनों को खड़े किए रहते हैं। जाम की स्थिति बन जाती है। ऐसे में यात्रियों को समय से टिकट लेने और फिर ट्रेन पकड़ने में परेशानी हो रही है।

नंबर छह:अब कुछ अनियमितताएं की बात करते हैं
प्लेटफॉर्म तक पहुंचने से पहले यात्री स्टेशन रोड से होकर प्रवेश द्वार संख्या एक के पास आते हैं। यहां ऑटो चालक प्रवेश द्वार के सामने ही वाहनों को रोक कर रखते हैं ताकि यात्री यहीं से उतर कर सर्कुलेटिंग एरिया में आ जाएं और जो यात्री बाहर निकलना चाहते हैं उन्हें यहीं पर ऑटो रिक्शा मिल जाए। दो पैसे अधिक कमाई के चक्कर में यहां अक्सर जाम की स्थिति उत्पन्न होती है। यहां आरपीएफ की ड्यूटी लगाई जाती है लेकिन वे भी कुछ खास नहीं कर पाते हैं। कारण की गेट के बाहर(रेल क्षेत्र से बाहर) इनकी नहीं चलती है।

नंबर सात:अधिक वसूली की शिकायत आम हो गई है
प्लेटफॉर्म पर रेलवे द्वारा संचालित कई स्टॉल हैं। कुछ खाने पीने की वस्तुओं की तो कुछ एक देश, एक उत्पाद की। कुछ पत्र पत्रिकाओं की तो कुछ अन्य सामग्रियों की दुकानें संचालित हो रहे हैं। विशेषकर खानपान के स्टॉल से रेल नीर की निर्धारित कीमत से अधिक की वसूली की शिकायत आम हो चुकी है। इसकी कीमत में कमी कर दिए जाने के बाद भी यात्रियों से खुलेआम ₹15 वसूली हो रही है। ठंडा बोतल के नाम पर तो ₹ 20 तक की वसूली हो रही है। चिप्स, कुरकुरे, बिस्किट, केक आदि की तो बात ही छोड़ दें। जैसे ग्राहक वैसी कीमत। रांची जा रहे एक यात्री सुबोध कुमार कहते हैं कि शिकायत कौन दर्ज कराए, ट्रेन पकड़कर जाना है। इस शिकायत के चक्कर में कहीं ट्रेन न छूट जाए। ऐसे कई यात्री मिलते हैं जो चुपचाप कुछ कहे बिना भी निकल पड़ते हैं।

नंबर आठ:कुछ रेलकर्मियों की तो कुछ ठेकेदारों की बातें
गया जंक्शन पर या यार्ड में या फिर लाइन में काम करने वाले कर्मचारियों की तकलीफों से भी परिचय हुआ। गया जंक्शन पर फिलहाल विकास कार्यों के जारी रहने के कारण उन्हें कई तरह की परेशानियों से रूबरू होना पड़ रहा है। वहीं वाशिंग पिट लाइन पर काम करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि पिट लाइन पर कोच के मेंटेनेंस करने में काफी परेशानी होती है। गंदगी और जल जमाव के बीच काम करने की मजबूरी है। पदाधिकारी उनकी शिकायत पर एक्शन नहीं लेते। प्राइवेट ऐजेंसी के साफ सफाई से लेकर कोच अटेंडेंट की शिकायत है कि उन्हें काफी कम मजदूरी मिलती है और वो भी समय से नहीं। छह हजार रुपए मासिक मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों की दास्तां ही कुछ और है।
शेष अगली कड़ी में…

मगध लाइव न्यूज चैनल को बहुत बहुत धन्यवाद।
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बहुत बहुत धन्यवाद ऐसे ही आगे बढ़ते रहिए।