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कुछ ऐसा ही सोच कर माखनलाल चतुर्वेदी जी ने इस कविता की रचना की होगी…हाल नगर निगम में पड़े…

देवब्रत मंडल चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥ चाह नहीं,…

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