एक आरक्षी अकेले अपने दम पर यात्री को बचाने की कोशिश में हार गए
देवब्रत मंडल

रविवार को गया जंक्शन पर एक यात्री की मृत्यु हो गई। यात्री हृदय रोग से ग्रसित थे। प्लेटफॉर्म पर ड्यूटी पर रहे आरपीएफ के जवान आशीष कुमार ने तत्परता दिखाई। फुट ओवर ब्रिज पर ही सीपीआर दिया। अन्य यात्रियों के सहयोग से टांग कर यात्री को सीढ़ियों पर चलकर प्लेटफॉर्म तक लाया गया लेकिन यात्री की जीवन रक्षा करने की तमाम कोशिशें उनकी विफल रही और शिव कुमार शर्मा(60) नामक यात्री की सांसें थम गई। सपत्नीक एक सुखद यात्रा की दुखांत। गया जंक्शन से दोनों धनबाद जाने वाले थे लेकिन पत्नी और इनके परिवार के लोगों ने ऐसी कल्पना भी नहीं की होगी। ये अलग बात है कि शिव कुमार शर्मा हृदय रोग से ग्रसित थे। 2023 से धनबाद में इनका ईलाज चल रहा था लेकिन ऐसा हो जाएगा उन्होंने भी नहीं सोचा होगा।

समय से सूचना दी गई पर यात्री को बचाया नहीं जा सका
आरक्षी आशीष कुमार ने जब देखा कि यात्री की तबीयत ज्यादा बिगड़ रही है तो तत्काल उन्होंने शाम 18:30 बजे इसकी सूचना डिप्टी एसएस और चिकित्सक को दी लेकिन गया रेल अनुमंडल के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. विकास कुमार के साथ मेडिकल की टीम शाम 19:10 बजे पहुंचती है और यात्री के मृत होने की पुष्टि कर देते हैं। सवाल यह उठता है कि अस्पताल से स्टेशन तक पहुंचने में 40 मिनट का समय लग जाता है। यदि और जल्द मेडिकल की टीम पहुंच जाती तो हो सकता था कि यात्री को समय से चिकित्सीय सुविधाएं मुहैया कराई जा सकती थी। शायद उनके जीवन को बचाया जा सकता था।

चिकित्सा पदाधिकारियों को अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा

पिछले दिनों चलती ट्रेन हावड़ा-बीकानेर सुपरफास्ट एक्सप्रेस में छट्ठू जायसवाल नामक यात्री की तबीयत बिगड़ने की सूचना रेल मदद एप्प के जरिए रेलवे अस्पताल को मिलती है लेकिन इमरजेंसी ड्यूटी में रहे मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ संदीप कुमार यात्री को स्वयं अटेंड नहीं कर पाते हैं। एक ड्रेसर विजय कुमार एम्बुलेंस से स्टेशन पहुंचते हैं और यात्री को दवा देते हैं। जब सीएमएस से उस दिन पूछा गया था तो उन्होंने अन्य कार्यों में अपनी व्यस्तता की वजह बताकर जिम्मेदारियों के साथ कर्तव्यों से पल्ला झाड़ लिए थे। उसी दिन उन्होंने बताया था कि कम से कम अस्पताल को सूचना 20 मिनट पहले मिल जाता है तो यात्री को समय से चिकित्सीय सुविधा मुहैया कराने में अस्पताल प्रबंधन सक्षम हो सकता है। लेकिन 22 जून की शाम 6:30 बजे अस्पताल को सूचना मिल जाती है और मेडिकल टीम 7:10 बजे स्टेशन पहुंचती है।
अस्पताल से जंक्शन आने जाने के रास्ते पर अतिक्रमण

अस्पताल से गया जंक्शन तक आने के रास्ते में दो जगहों पर ट्रैफिक जाम लगा रहता है। पहला रेलवे गुमटी नंबर एक के पास। कारण यहां अनाधिकृत रूप से रेल परिसर में फल व सब्जी की दुकानें लगी होती है। आमलोग खरीदारी करने के लिए आना जाना करते रहते हैं। वहीं सड़क किनारे पर भी दुकानें लगी हुई होती है। वाहनों का आना जाना हमेशा लगा रहता है। जिससे रेलवे अस्पताल से स्टेशन तक आने में एम्बुलेंस को जाम से होकर गुजरना पड़ता है।
स्टेशन के पास भी जाम की समस्या बनी रहती है
गया जंक्शन के पुनर्विकास कार्यों के कारण स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर प्रवेश करने वाले स्थान पर बेतरतीब वाहनें लगी होती है। दोपहिया, तिपहिया और चारपहिया वाहनों के लगे रहने से इस स्थान पर अक्सर जाम लगा रहता है। ऑटो रिक्शा चालक, ई रिक्शा चालक दल यात्रियों को लेने के लिए प्लेटफॉर्म तक पहुंच जाते हैं। इस होड़ के कारण भी जाम की समस्या बनी रहती है। ऐसे में एम्बुलेंस को अस्पताल से निकलकर स्टेशन तक आने में देरी होती है। जिसके कारण समय पर मेडिकल की टीम यात्रियों तक नहीं पहुंच पाती है।
जंक्शन पर स्थायी चिकित्सा केंद्र व दवा दुकान की मांग
पूर्व मध्य रेल के डीडीयू मंडल के यात्री परामर्शदातृ समिति के पूर्व सदस्य डॉ विनोद कुमार मंडल कहते हैं कि गया जंक्शन पर हजारों यात्रियों का प्रतिदिन आना जाना लगा रहता है। प्लेटफॉर्म पर सफर में रहे यात्रियों की जब किसी यात्री की तबीयत बिगड़ने की सूचना मिलती है तो उन्हें समय से चिकित्सीय सुविधा मुहैया करवाने की जिम्मेदारी रेल प्रशासन की है। ऐसे में गया जंक्शन पर स्थायी चिकित्सा पदाधिकारी, मेडिकल टीम और इमर्जेंसी दवाओं के साथ साथ एक दवा की दुकान का होना जरूरी है। श्री मंडल ने रेलमंत्री से गया जंक्शन पर ये सारी व्यवस्था एं तथा सुविधाएं शीघ्र उपलब्ध कराने की मांग की है।