देवब्रत मंडल

गया जी शहर की सड़कें अतिक्रमण के आगोश में है। बाकी सभी खामोश हैं। अतिक्रमण कर दुकानें चलाना मुश्किल काम नहीं, यहां बहुत ही आसान है। लेकिन साहेब के नजर से बच के। साहेब की मर्जी होगी तो लगेगी दुकानें, मर्जी नहीं है तो हट जाती है दुकानें।
फुटपाथ पर दुकानें लगी हुई हैं
गया जी शहर के स्टेशन रोड का नजारा आपको इस रिपोर्ट के साथ लगी तस्वीरों में देखने को मिल जाएंगे। एक नहीं, कई दुकानें नजर आएगी। जो मजे से चल रही है। ये खुली आँखों से देखे जा सकते हैं। बताने की जरूरत नहीं।

साहेब’ आते हैं तो मेरी मर्जी से दुकानें हटा लेना
हां! इस बात का ख्याल रखने का अघोषित निर्देश है इन दुकानदारों को कि जब ‘साहेब’ आते हैं तो मेरी मर्जी से दुकानें हटा लेना, नहीं तो दंड के भागी आप दुकानदार होंगे, हम नहीं।
रेल क्षेत्र में भी लगी है कई दुकानें
अब सिविल एरिया से आते हैं रेल एरिया में। अजातशत्रु होटल के ठीक सामने गया जंक्शन का प्रवेश द्वार है। यहां भी देख सकते हैं कि दुकानें दोनों ओर लगी हुई है। यहां दुकानें किसकी मर्जी से लगती है, ये बताने की जरूरत नहीं। सबकुछ शीशे की तरह साफ है।
आखिर इस अतिक्रमण के लिए जिम्मेवार कौन?
अतिक्रमण के लिए जिम्मेवार कौन? ये दुकानदार तो नहीं हो सकते हैं क्योंकि इनमें इतनी हिम्मत नहीं कि साहेब की बात नहीं मानेंगे। क्योंकि इन दुकानदारों का पेट चलता है। परिवार के लोगों के लिए इन्हें सबकुछ ‘सहना’ पड़ता है।

मौसम विभाग की तरह पूर्व सूचना मिल जाती है इन्हें
जब हवा आंधी के रूप में आने की पूर्व सूचना मौसम विभाग की तरह इन दुकानदारों को मिल जाती है। इसके पहले की आंधी आए, इनकी दुकानें बंद हो जाती है और स्थान साफ हो जाते हैं।
फुटपाथ पर लगती है दुकानें
स्टेशन रोड के रेलवे से सटे बाउंड्री वाल है। इसी बाउंड्री वाल से सटे पैदल चलने वाले लोगों के फुटपाथ बनाया गया है। जब नजरों को दौड़ाएंगे तो पाएंगे कि फुटपाथ पर दुकानें हैं और पैदल चलने वाले लोग सड़क पर चलने को मजबूर हैं।