पाठक की कलम से

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की रणभेरी नहीं बजी है लेकिन आहट सुनाई दे रही है। आहट भी ऐसी कि दिल घबरा रहा है। ये आहट सोशल मीडिया पर ऐसी ही है कि गया जी शहर के भाग्य विधाता(मतदाता) थोड़े क्या बहुत बेचैन हो रहे हैं।
गया जी शहरी विधानसभा चुनाव क्षेत्र में अंगद की तरह पैर जमाए मंत्री प्रेम कुमार टस से मस नहीं हो रहे हैं। प्रयासों के इतिहास गवाह हैं कि इनका कोई बाल बांका तो 2020 तक नहीं कर पाए हैं। 2025 में क्या होगा? यह तो वही बात है कि महाभारत टीवी सीरियल के शुरुआत में कालचक्र का पहिया घूमते हुए कहता है कि- ‘मैं समय हूं।’
चलिए इस शहर में क्या विकास हुआ, किसी की आंखों से ओझल नहीं। किसने क्या किया, इसका बखान जरूरी नहीं।
गया अब गया जी हो गया और हम सब गया जी वासी। इस विधानसभा क्षेत्र के भाग्य विधाता(मतदाता) चुनाव की रणभेरी का इंतजार कर रहे हैं। इसका इंतजार हर पांच साल का रहता है। कभी कभार ही मध्यावधि की भी बात हुई। शहर के भाग्य विधाता मोहन के ‘मोह’ और ‘प्रेम’ के प्यार के बीच झूल रहे नजर आते हैं। इन दोनों के बीच किसी तीसरे की गुंजाइश नहीं नजर आ रही है। अब इन दोनों के ‘आका’ इस बार फिर से ‘भाग्य विधाताओं’ के बीच भेजते हैं या कुछ नए चेहरे को सामने लाते हैं, ये तय होना बाकी है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के नतीजों के भरोसे दावा करना एक क्षण के लिए खुशफहमी ही कहा जा सकता है क्योंकि फैसला ‘ईवीएम’ के जरिए होता है।
गठबंधन में हठबंधन भी जगह बना रहा है। गठबंधन धर्म आका निभाने के लिए बाध्य हो सकते हैं लेकिन भाग्य विधाता नहीं। यहां हर एक भाग्य विधाता का अपना अपना ‘धर्म’ है। जिन्हें अपना अपना धर्म और कर्म चुनने या मानने की आजादी है। यही स्वस्थ लोकतंत्र की नींव है।
फिलहाल, विकल्प विहीन, निरीह भाग्य विधाताओं के हाथ कुछ नहीं लगने वाले हैं। किनके ‘मोह’ में फंस जाएंगे या किसके ‘प्रेम’ जाल में फंस जाएंगे, ये कोई नहीं जानता, जानते हैं तो सिर्फ यहां के भाग्य विधाता।
रणवीर, उपडडीह, गया जी