देवब्रत मंडल
देखा जाए तो रेलवे की भूमि का देखरेख करने की जिम्मेदारी स्थानीय मंडल सहायक अभियंता की है। जिनके मातहत काम करने वाले कार्य निरीक्षक(आईओडब्ल्यू) या तो चल रही दुकानों के बारे में(अतिक्रमण) में अपने वरीय को रिपोर्ट नहीं करते हैं या फिर इनकी चुप्पी में इनकी भी सहभागिता नजर आती है। यदि आईओडब्ल्यू रिपोर्ट करते भी होंगे तो ऊपर जाकर मामला दब जाता होगा। वैसे तो यही चर्चा है कि माल महाराज के और मिर्जा होली खेल रहे हैं।

पूर्व मध्य रेल के डीडीयू मंडल के गया जंक्शन के पदाधिकारी की मिलीभगत से डेल्हा साइड एक नंबर रेल गुमटी(बंद) के पास फल एवं सब्जियों की मंडी सज गई है। कुछ महीने पहले स्थानीय रेल प्रशासन ने यहां से करीब चार दर्जन अस्थायी दुकानों को हटाने के साथ एक संयुक्त रिपोर्ट मुख्यालय को भेजी थी लेकिन दुकानें आज भी गुलजार है तो पिछली रिपोर्ट झूठ साबित हो रही है। डीडीयू मंडल के इस स्थान पर या फिर एस एंड टी कार्यालय के सामने अवैध रूप से दुकानें संचालित होने के पीछे स्थानीय रेल प्रशासन की मिलीभगत साफ दृष्टिगोचर होती है। यदि ऐसा नहीं है तो जब डेल्हा साइड में 06 जून को यहां से दुकानों को हटा दिए जाने की रिपोर्ट के बाद फिर दुकानें कैसे सज गई?
‘नेजाम’ बदल गए पर स्थिति नहीं बदली

एक नंबर गुमटी(बंद) के दोनों साइड में 150 से अधिक फल एवं सब्जियों की दुकानों की भरमार है। हाल ही में एक तरफ की दुकानों से रुपयों की वसूली करने वाला एक व्यक्ति जो कथित रूप से आरपीएफ का ठीकेदार के नाम से जाना जाता है, उसे जिला पुलिस बल ने मारपीट के किसी मामले में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। घटना विश्वकर्मा पूजा के एक दो पहले की बताई जा रही है। अब इनकी जगह कोई दूसरा ‘नेजाम’ है जो वसूली करता है। वहीं डेल्हा साइड की दुकानों से पैसे वसूलने वाले भी ‘नेजाम’ बदल दिए गए हैं।
एक के साथ एक फ्री का ऑफर मिला

गया जंक्शन के डेल्हा साइड में ऑटो स्टैंड का ठीकेदार बदल गया है। पितृपक्ष मेला 2025 की अवधि में पुराने ठीकेदार का कार्यकाल समाप्त हो गया था। शायद 11 सितंबर तक पुराने ठीकेदार थे, इसके बाद नए ठीकेदार के साथ रेलवे ने तीन साल के लिए अनुबंध किया है। जिसे इसके साथ एक फ्री ऑफर दिया गया है। ऑफर यह मिला है कि जो ऑटो स्टैंड का काम देखेगा उसे ही डेल्हा साइड के एक नंबर गुमटी के पास लगने वाली दुकानों से पैसे वसूल करेगा। चर्चा है कि गया आरपीएफ पोस्ट के एक-दो सिपाही ने इसमें अहम भूमिका निभाई है।
लाखों की होती है मासिक वसूली



बताया जाता है कि एक दुकान से 200 से 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से वसूली होती है। दोनों तरफ की दुकानों को मिला दें तो करीब 150 से अधिक दुकानें लगती है। इस हिसाब से यदि औसतन 200 रुपये ही मान लिया जाता है तो 30 हजार रुपये प्रतिदिन अवैध रूप से वसूली की जा रही है। महीने का हिसाब करें तो करीब 09 लाख रुपए और सालाना 1 करोड़ रुपए वसूली की जा रही है।