गया शहर का एक ऐसा विद्यालय, न तो पीने का पानी और ना ही शौचालय, छात्र और शिक्षक दोनों चिंतित

Deobarat Mandal

देवब्रत मंडल

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लोको मध्य विद्यालय भवन

क्या आप गया शहर में ऐसा विद्यालय देखा है, जिसमें पढ़ने वाले बच्चों के लिए और न तो पढ़ाने वाली शिक्षिकाओं के लिए शौचालय है और ना तो पीने के लिए पानी की ही व्यवस्था। और तो और कमरे भी दो और कक्षाएं आठ तक। छात्र-छात्राओं की संख्या करीब 175 है तथा शिक्षिकों की संख्या आठ। सभी महिला।

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डीएम से शिकायत करतीं वार्ड पार्षद

डीएम से ऊपर के अधिकारियों तक शिकायत नहीं पहुंची है

इस विद्यालय की दास्तां कुछ ऐसी है कि मानवाधिकार आयोग तक यदि बात पहुंच जाए तो अधिकारियों के ऊपर गाज गिरना तय है। शुक्र है कि इसकी शिकायत अबतक किसी ने बड़े अधिकारी या आयोग तक नहीं पहुंचाई है। हां! क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि वार्ड पार्षद डीएम से यहां की समस्याओं से अवगत कराया है।

हाल लोको मध्य विद्यालय का, जो शिफ्ट होकर बागेश्वरी मंदिर के पास आ गया

जी हां! यह विद्यालय गया शहरी विधानसभा क्षेत्र में संचालित हो रहे हैं। जिसका नाम राजकीय मध्य विद्यालय, लोको, गया है। जिसे लोको मध्य विद्यालय के नाम से भी जाना जाता है। यह विद्यालय पहले लोको कॉलोनी में रेलवे के एक भवन में संचालित हो रहा था लेकिन सरकार ने उस भवन को जर्जर घोषित कर दिया है तब यहां(न्यू कॉलोनी बागेश्वरी) में बने भवन में इस विद्यालय को शिफ्ट कर दिया गया है।

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डॉ. प्रेम कुमार ने किया था भवन का उद्घाटन, उठे थे सवाल

इस विद्यालय भवन का उद्घाटन हाल ही में गया शहर विधानसभा क्षेत्र के विधायक सह मंत्री डॉ. प्रेम कुमार करने आए थे। यहां के लोगों ने बताया कि उसी दिन इस विद्यालय के शिक्षिकाओं ने यह प्रश्न उठाया था तो मंत्री डॉ प्रेम कुमार ने भरोसा दिलाया था कि जो भी सुविधाओं की कमी है उसे दूर करवा दिया जाएगा। लेकिन वर्तमान समय में सुविधाओं की कमी छात्र-छात्राओं सहित शिक्षक भी महसूस कर रहे हैं।

दो छोटे कमरों में संचालित हो रहा है विद्यालय

धनतेरस के दिन से ही इस दो छोटे कमरे वाले विद्यालय में वर्ग संचालित हो रहे हैं। कमरों की लंबाई चौड़ाई इतनी कम है कि आम आदमी भी देख लेगा तो समझ सकता है कि इन दो छोटे कमरों में वर्ग एक से लेकर वर्ग आठ तक के 175 छात्र छात्राएं कैसे बैठकर पढ़ाई कर सकते हैं।

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एकसाथ तीन कक्षा के छात्रों को पढ़ाती शिक्षिकाएं

वर्ग एक और दो के बच्चे बरामदा में जमीन पर बैठते हैं

वर्ग कमरों की संख्या कम होने और इसके क्षेत्रफल कम होने के कारण जहां वर्ग एक और दो के बच्चे बरामदा में दरी पर बैठते हैं तो एक कमरे में वर्ग तीन, चार और पांच के छात्र एकसाथ और दूसरे कमरे में वर्ग छः, सात एवं आठ के छात्र एकसाथ पढ़ते हैं।

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था पर उठ रहे सवाल

इसी दो कमरे में शिक्षिकाओं को एक साथ पढ़ाना पड़ता है जो कहीं से भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के पैमाने पर सही नहीं कहा जा सकता है। और तो और आज तक स्कूल में श्यामपट्ट नहीं है। स्कूल के महत्वपूर्ण पत्र व कागजात प्रधानाध्यापिका को पर्सनल बैग में रखना पड़ता है।

विद्यालय का अपना न तो शौचालय और न तो पीने का पानी

विद्यालय के दो कमरों के अलावा न तो शौचालय निर्माण कराया गया है और न तो पीने के पानी के लिए अलग से व्यवस्था की गई है। मिड डे मील करने के बाद छात्रों को पास के सामुदायिक भवन के नल का पानी उपयोग करना पड़ता है। इधर एक दो दिन पहले इसी सामुदायिक भवन की चाबी मौखिक रूप से चाबी दी गई है तो इसका शौचालय का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन कागजी तौर पर लिखित रूप में नहीं दिया गया है। शायद मतदान केंद्र होने की वजह से चाबी दी गई है।

मुख्य मार्ग से सटे होने से बना रहता है खतरा

बागेश्वरी रोड से सटे होने के कारण इस विद्यालय के बच्चे मध्यांतर में कब सड़क पर आ जाएं कहना मुश्किल है। वैसे यहां की शिक्षिकाएं इस बात का ख्याल रखती हैं कि बच्चे सड़क पर न निकलें। विद्यालय आने के समय और छुट्टी होने के बाद बच्चों को मुख्य सड़क से ही आना जाना करना पड़ता है जिससे हमेशा खतरे की आशंका बनी हुई रहती है।

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