देवब्रत मंडल

आइए! आज आप को ले चलते हैं गया जंक्शन के पास। गया जंक्शन के पास एक नंबर गुमटी को तो सभी जानते ही होंगे। नहीं जानते हैं तो चलिए गया जंक्शन। रेलवे सिनेमा हॉल वाले रास्ते से। इसी रास्ते पर एक नंबर गुमटी है। अब सिनेमा हॉल भी नहीं रहा और न तो एक नंबर गुमटी। दोनों बंद कर दिया गया।
दुकानदारों के हैं आजीविका के साधन
इस गुमटी के पास रेलवे की जमीन खाली पड़ी है। इसके दोनों तरफ फल एवं सब्जियों की करीब 50 दुकानों के अलावा कुछ और वस्तुओं की भी दुकानें हैं। ये दुकानें दुकानदारों के आजीविका के साधन हैं। इनसे इनका घर परिवार चल रहा है। साथ में चल रहा है कई लोगों के ‘रोजगार’।
प्रतिदिन चुंगी देते हैं ये दुकानदार

इस जमीन को रेलवे ने किसी को लीज पर भी नहीं दिया है और न कोई सरकारी आदेश। परंतु यहां मजे से दुकानें चल रही है। ये दुकानदार मुफ्त में दुकान नहीं लगाते हैं। इन्हें चुंगी देना पड़ता है और वो भी प्रतिदिन। एक दुकानदार ने बताया प्रतिदिन 150 से 200 रुपये एक ठीकेदार का आदमी वसूली करता है। ठीकेदार कौन है? तो नाम बताया राजकुमार।
कौन है जो इसे संरक्षण दे रहा है
हिसाब किताब देखें तो प्रतिदिन दो सौ रुपये के हिसाब से 50 दुकानदारों से 10 हजार रुपए की अवैध वसूली की जा रही है। महीने के तीस दिनों के हिसाब से तीन लाख रुपए हो जाते हैं। अब ये मत पूछिए कि ठीकेदार इन पैसों का हिसाब किताब किसे देता है। कोई न कोई तो जरूर है जो इतनी दिलेरी से चुंगी वसूली करने दे रहा है।

सालाना 36 लाख रुपए की अवैध वसूली
सालाना 36 लाख रुपये की अवैध वसूली केवल इस जगह पर लगी दुकानों से हो रही है तो बाकी जगहों की बात ही छोड़ दीजिए। सवाल यह है कि यदि इस जमीन को किसी को भी लीज(किराए) पर दे दिया जाए तो रेल को इस खाली जगह से शुद्ध मुनाफा होगा। देखा जाए तो प्लेटफॉर्म पर एक छोटी सी दुकान का किराया सालाना लाख रुपए से ऊपर है।
और अंत में…
ये भी देखने को मिलते हैं कि जब रेल के बड़े अधिकारियों का गया आगमन होना होता है तो ये दुकानें स्वतः बंद हो जाती है, आखिर कौन है जो इन्हें बता देता है कि साहेब आने वाले हैं? यही जांच का असली मुद्दा है।