देवब्रत मंडल

बेटा दिलीप कुमार। धन की लालच में मां को मृत करार दे दिया। वो भी शपथ लेकर। मां ‘जिंदा’ हो उठी। सरकारी कागज पर मर चुकी मीणा देवी ‘कब्र’ से उठकर अपने औलाद के कृत को उजागर कर दीं। सभी हैरान हैं। आखिर ये कैसे हो गया? स्वाभाविक है कि यह अचंभित कर देने वाली एक कहानी है।
बेटे के कृत की हर तरफ हो रही भर्त्सना
गया जी। जिसे मोक्ष और ज्ञान की भूमि के रूप में सभी सम्मान देते हैं। इस भूमि पर एक पुत्र ने ऐसा कृत कर दिया, जिसकी हर तरफ भर्त्सना हो रही है। बेटा अब गायब है। जिसे खोजने में सभी लग गए हैं।
कैसे निर्गत हो गया जीवित व्यक्ति का मृत्यु प्रमाण पत्र
सवालों के घेरे में फिलहाल गया जी नगर निगम आ गया है। सवाल खड़े करने वाले बुद्धिजीवी वर्ग के हैं। जवाब मांगा जा रहा है कि आखिर जीवित मीणा देवी का मृत्यु प्रमाण पत्र निगम कार्यालय से कैसे निर्गत हो गया? अधिकारी जांच की बात कहकर मामले की तह में जाने की कोशिश कर रहे हैं।
वार्ड पार्षद के बयान भ्रामक या फिर लेटर पैड
एक मीडिया हाउस में छपी रिपोर्ट में वार्ड नं 17 की पार्षद का कहना था कि जिस लेटर पैड की बात सामने आ रही है, उसे देखने पर ही पता चलेगा कि उनके हस्ताक्षर ही हैं या फिर यह लेटर पैड भी तो कहीं फर्जी नहीं। खैर, हस्ताक्षर(हैंडराइटिंग) एक्सपर्ट की बात है। लेकिन कार्यालय को उपलब्ध लेटर पैड की बात जहां तक सामने आ रही है तो इसमें वार्ड पार्षद के ही हस्ताक्षर बताए जा रहे हैं लेकिन magadhlive इसकी पुष्टि नहीं करता है।(लेटर पैड magadhlive के पास सर्वाधिकार सुरक्षित है)।
बेटा दिलीप और दोनों गवाह भी फरार
आवेदक दिलीप कुमार, शपथकर्ता दिलीप कुमार, फॉर्म पर हस्ताक्षर दिलीप कुमार। गवाह शंकर और एक अन्य भी उनके ही पहचान के ही होंगे जो भी फरार चल रहे हैं। जिन्हें वार्ड पार्षद भी अवश्य जानते पहचानते होंगे।
कर्मचारी को यकीन गवाहों की बातों से हुआ
जांच करने गए कर्मचारी धीरेंद्र अवश्य ही दिलीप कुमार, दोनों स्वतंत्र गवाह से मिले होंगे। उनके सामने हस्ताक्षर बनाए होंगे। तब धीरेंद्र को यकीन हो गया होगा कि सच में मीणा देवी की मृत्यु 28.02.2024 को हो चुकी है। इसके बाद उन्होंने अपनी रिपोर्ट कार्यालय को समर्पित किए।
रजिस्ट्रार के लॉगिन से ही पास होते हैं प्रमाण पत्र
इसके बाद जन्म मृत्यु रजिस्ट्रार के पास रिपोर्ट जब पहुंची होगी तो उनके लॉगिन(log.in) से सांख्यिकी विभाग एवं नगर निगम में मामला गया होगा। जिनके द्वारा अप्रूवल के बाद जन्म मृत्यु कार्यालय में प्रमाण पत्र अपलोड किया गया होगा। इसके बाद यहां से मृत्यु प्रमाण पत्र निर्गत किया होगा। जिसे प्राप्त करने के बाद दिलीप कुमार अपनी अगली चाल चली।
इस शाखा की भी गलती नहीं मानी जा सकती
राजस्व शाखा में नामांतरण के लिए कागजात दाखिल किए गए होंगे। यहां के कर्मचारियों ने सभी सलंग्न दस्तावेज की जांच की होगी। जब सभी प्रकार से संतुष्ट हो गए होंगे तो कथित मृत मीणा देवी के नाम से मकान खारिज होकर दिलीप कुमार के नाम से दाखिल हुआ। जब यह बात मीना देवी को पता चला तो नगर निगम में इस बात को लेकर पहुंच गईं तो सभी को पता चला कि जीवित व्यक्ति का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी हुआ।
दोषी कौन, बड़ा सवाल
अब इस पूरी प्रक्रिया में दोषी कौन है यह अहम और बड़ा सवाल है। यह तो सर्वविदित हो चुका है कि पुत्र दिलीप कुमार ही इस कहानी का आदि भी है और अंत भी। पर, अब नगर निगम कार्यालय का कोई भी व्यक्ति क्या वार्ड पार्षद के लेटर पैड पर यानि कि उनकी बातों पर अब के बाद से भरोसा करेगा? एक बार ऐसा ही फर्जी हस्ताक्षर(वार्ड पार्षद के) का मामला वार्ड पार्षद धर्मेंद्र कुमार के खिलाफ प्रयोग में आया था लेकिन उन्होंने खुद इस मामले को आगे नहीं बढ़ाया, कारण जो कुछ भी रहे थे।
