अधिकारियों की ‘झिड़की’ सुनने के आदि हो गए ‘साहेब’, कमिटमेंट कर निभाना नहीं जानते

Deobarat Mandal

न्यूज़ डेस्क

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गया जी जंक्शन के एक दो ‘साहेब’ अधिकारियों की झिड़कियां सुनने के मानो आदि हो गए हैं। ये साहेब अधिकारियों के सामने तो कमिटमेंट कर देते हैं लेकिन उसे पूरा नहीं कर पाते हैं। स्वाभाविक है कि ऐसे में अधिकारियों को गुस्सा आ ही जायेगा।

ताला बन गया था मुसीबत

पिछले दिनों रेलवे के एक अधिकारी यात्री सुविधाओं का जायजा लेने गया जंक्शन पर निकल पड़े थे। इसी क्रम में जन सुविधा से जुड़े एक कमरे में ताला लगा देख उसे खोल कर देखना चाहे। चाबियों का गुच्छा आ गया लेकिन उसमें बंद ताले की चाबी नहीं थी तो दरवाजा नहीं खुला। ये देख अधिकारी महोदय का गुस्सा सातवें आसमान पर और इंजीनियरिंग विभाग से जुड़े साहेब पर अधिकारी भड़क गए और झिड़कियों की झड़ी लगा दी।

एक साहेब तो झिड़की सुनने के बाद हट गए थे

यात्रियों की सुरक्षा से जुड़े एक ‘साहेब’ को भी कुछ इसी तरह के गुस्से का कोपभाजन बनना पड़ा था। झिड़कियां सुनने के बाद साहेब को मानो आत्मग्लानि हुई और देरी न करते हुए उस जगह से निकल पड़े। चर्चा हुई कि ये साहेब अपने चैम्बर में आकर बैठ गए।

एफआईआर दर्ज करवाने की बात कह दी लेकिन…

गया जंक्शन पर पितृपक्ष मेला में आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए होल्डिंग एरिया चिन्हित करते हुए उसमें पर्याप्त सुविधा उपलब्ध कराने का कमिटमेंट कर चुके एक अभियंता को फिर एक अधिकारी के गुस्से का कोपभाजन बनना पड़ गया। दरअसल, यहां जन सुविधाओं का हाल बेहाल रहने की जानकारी प्राप्त हुई थी तो शाम में ही जिले के एक बड़े पदाधिकारी जंक्शन पर पहुंच गए। सीधे वहीं पहुंच गए और फिर वही बात हुई कि कमिटमेंट जो कर चुके थे वह पूरा नहीं हुआ था तो पदाधिकारी महोदय गुस्से में अभियंता महोदय के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवाने की बात कह गए। बाद में पता चला कि ये ठीकेदार नहीं हैं बल्कि रेल के पदाधिकारी हैं तब पदाधिकारी महोदय क्रोध की घूंट पीकर रह गए।

इन दिनों एक सिपाही जी काफी चर्चा में

यात्रियों की सुरक्षा के साथ साथ रेल संपत्तियों की रक्षा करने वाले एक महकमे से जुड़े विभाग के एक सिपाही जी इन दिनों काफी चर्चा में हैं। चर्चा में इसलिए हैं कि इनके ऊपर वाले पदाधिकारी का इन पर विशेष कृपा इन दिनों बरस रही है। इसलिए सिपाही जी स्वयं को बड़े तीरंदाज बने हुए हैं और जहां तहां तीर चला दे रहे हैं। जिसकी शिकायत बड़े साहेब तक पहुंच गई है। गरीब गुरबे, दो रोटी की जुगाड़ में लगे लोगों को इनका यह अंदाज पसंद नहीं है। जिसके कारण इनके किस्से चर्चा में हर दिन रहते हैं।

…और अंत में

17 दिवसीय पिंडदान के कर्मकांड के विधान है। तो 06 सितंबर से पितृपक्ष मेला शुरू हो गया है। इस मेले का उद्घाटन समारोह में शामिल होने के लिए सभी जगहों पर निमंत्रण पत्र भेजा जा रहा है लेकिन इस मेला को लेकर केंद्र सरकार के एक महत्वपूर्ण योगदान देने वाले महकमे के शीर्ष अधिकारी को निमंत्रण नहीं भेजा गया है। पूछने पर इस महकमे के साहेब ने कहा-हमारी कोशिश यात्रियों को बेहतर सुविधा देना है जो हम करवा रहे हैं। आमंत्रण पत्र की प्रतीक्षा हम क्यों करें।

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