✍️दीपक कुमार

कारगिल युद्ध के महानायक कैप्टन विक्रम बत्रा, परमवीर चक्र, के सर्वोच्च बलिदान की 25वीं वर्षगांठ पर अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी (OTA) गया ने एक सप्ताह लंबे भव्य समारोह का आयोजन किया। 2 से 7 जुलाई 2024 तक चले इस कार्यक्रम ने न केवल अकादमी के अधिकारियों, जूनियर कमीशंड अधिकारियों, अन्य रैंकों और रक्षा नागरिक कर्मचारियों में देशभक्ति की भावना जगाई, बल्कि अकादमी के कैडेटों को भी प्रेरित किया।

समारोह की शुरुआत 2 से 4 जुलाई तक देशभक्ति से ओतप्रोत फिल्मों जैसे ‘LOC कारगिल’, ‘शेरशाह’ और ‘लक्ष्य’ की स्क्रीनिंग से हुई। इन फिल्मों ने कारगिल युद्ध की वीरगाथाओं को जीवंत किया और कैप्टन बत्रा के जीवन पर प्रकाश डाला।
समारोह का मुख्य आकर्षण 6 जुलाई को विजय सभागार में आयोजित स्मृति वार्ताओं की श्रृंखला रही। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे:

- लेफ्टिनेंट जनरल योगेश कुमार जोशी, PVSM, UYSM, AVSM, VrC, SM (सेवानिवृत्त), जो ऑपरेशन विजय के दौरान 13वीं बटालियन, जम्मू और कश्मीर राइफल्स के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर थे।
- श्री गिरधारी लाल बत्रा, कैप्टन विक्रम बत्रा के गौरवान्वित पिता।
- श्री विशाल बत्रा, कैप्टन विक्रम बत्रा के जुड़वां भाई।
- श्री मुकेश खेतरपाल, स्वर्गीय सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल, परमवीर चक्र के भाई।
इसके अतिरिक्त, ब्रिगेडियर एस विजय भास्कर, वीर चक्र, कर्नल विकास वोहरा, वीर चक्र और कैप्टन नवीन नागप्पा, सेना मेडल के पूर्व रिकॉर्ड किए गए वीडियो संदेश भी प्रसारित किए गए। ये सभी अधिकारी 13वीं बटालियन, जम्मू और कश्मीर राइफल्स में कैप्टन बत्रा के साथ सेवा कर चुके हैं।

वार्ताओं और वीडियो संदेशों का मुख्य केंद्र कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन की झलकियां और किस्से थे। वक्ताओं ने उनके बचपन से लेकर कारगिल युद्ध (ऑपरेशन विजय) में एक जूनियर नेता के रूप में उनकी भूमिका तक की यात्रा का वर्णन किया।
लेफ्टिनेंट जनरल जोशी ने कहा, “कैप्टन बत्रा का साहस और नेतृत्व कौशल असाधारण था। उन्होंने अपने जीवन की परवाह किए बिना अपने सैनिकों का नेतृत्व किया।”

श्री गिरधारी लाल बत्रा ने अपने बेटे के बचपन के किस्से साझा करते हुए कहा, “विक्रम बचपन से ही देशभक्त था। वह हमेशा कहता था कि वह देश की सेवा करना चाहता है।”

कैप्टन बत्रा के भाई विशाल ने भावुक होते हुए कहा, “विक्रम का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। वह आज भी लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।”
इस अवसर पर OTA गया के कमांडेंट ने कहा, “कैप्टन बत्रा की वीरता की गाथा हमारे कैडेटों को प्रेरित करती रहेगी। उनका जीवन हमें सिखाता है कि देश के लिए कोई बलिदान बहुत बड़ा नहीं होता।”
समारोह के अंतिम दिन, 7 जुलाई को, अकादमी में एक विशेष परेड का आयोजन किया गया, जिसमें कैडेटों ने कैप्टन बत्रा को श्रद्धांजलि दी। इस अवसर पर कैप्टन बत्रा के परिवार के सदस्यों को भी सम्मानित किया गया।

कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दे दी, भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किए गए। उनका प्रसिद्ध नारा “ये दिल मांगे मोर!” आज भी भारतीय सेना के जोश और जुनून का प्रतीक है।
इस समारोह ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरगाथा काल के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।