सरकारी मदद का इंतजार छोड़, खुद ही सड़क बना रहे महादेव बिगहा के वासी”

Deepak Kumar
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स्वयं के बल पर विकास का मार्ग प्रशस्त करते महादेव बिगहा के वासी

टिकारी संवाददाता : प्रगति के इस युग में जहाँ शहरों में विकास की गति तेज़ है, वहीं ग्रामीण भारत की तस्वीर अभी भी धूमिल है। ऐसा ही एक उदाहरण है टिकारी प्रखंड के जलालपुर पंचायत का महादेव बिगहा गाँव, जहाँ आज भी लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। गाँव का मुख्य संपर्क मार्ग, जो जीवन की धमनी के समान है, वर्षों से उपेक्षा का शिकार रहा है।

बारिश के मौसम में यह मार्ग कीचड़ का दलदल बन जाता है, जिससे आम नागरिकों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। स्कूली बच्चों का विद्यालय जाना दूभर हो जाता है, और अचानक बीमार पड़ने पर मरीजों की स्थिति दयनीय हो जाती है। यह मार्ग न केवल असुविधाजनक है, बल्कि जान-माल के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है।

गाँव के निवासी परमानंद यादव ने बताया, “हमने कई बार स्थानीय सांसद, विधायक और मुखिया से गुहार लगाई, लेकिन हमारी आवाज़ सुनी नहीं गई। प्रशासन की इस उदासीनता ने हमें मजबूर किया कि हम खुद ही अपने मार्ग का निर्माण करें।”

इस विपरीत परिस्थिति में गाँव के लोगों ने एक अनूठी पहल की है। कीचड़युक्त रास्ता से तंग आकर प्रभावित गांव के ग्रामीण एसएच 69 टिकारी कुर्था मार्ग से गांव जोड़ने वाली सड़क की मरम्मत करने का बीड़ा उठाया है। धर्मेंद्र यादव, मधेश यादव, और जयप्रकाश यादव जैसे ग्रामीण आगे आए हैं और अपने सीमित संसाधनों का उपयोग करते हुए सड़क को सुधारने में जुटे हैं।

ग्रामीणों ने अपने मामूली बचत से धन एकत्र किया है और श्रमदान के माध्यम से काम कर रहे हैं। वे गड्ढों में पत्थर और रोड़े डालकर मार्ग को थोड़ा सुगम बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यह कार्य न केवल उनकी एकजुटता को दर्शाता है, बल्कि उनके संकल्प और आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है।

हालांकि, यह प्रयास एक अस्थायी समाधान है। गाँव के लोगों का मानना है कि स्थायी समाधान के लिए सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक है। उन्होंने मांग की है कि महादेव बिगहा से कमलापुर तक की सड़क का पक्कीकरण किया जाए, जिससे गाँव का विकास संभव हो सके।

यह कहानी ग्रामीण भारत की वास्तविकता को उजागर करती है, जहाँ विकास अभी भी एक दूर का सपना है। साथ ही, यह लोगों के संघर्ष, उनकी एकता और आत्मनिर्भरता की भावना को भी प्रदर्शित करती है। महादेव बिगहा के निवासियों की यह पहल अन्य गाँवों के लिए एक प्रेरणा बन सकती है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठाती है कि क्या 21वीं सदी के भारत में लोगों को अपनी बुनियादी सुविधाओं के लिए इस तरह संघर्ष करना पड़ेगा?

इस प्रकार की स्थिति पर ध्यान देने और समाधान खोजने की आवश्यकता है, ताकि हर गाँव का विकास सुनिश्चित हो सके और देश का समग्र विकास संभव हो।

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