देवब्रत मंडल
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ।
चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ॥
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ।
चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूँ, भाग्य पर इठलाऊँ॥

मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ में देना तुम फेंक॥
मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने।
जिस पथ जावें वीर अनेक॥
ज्यादा दिनों की बात नहीं। बात 16 अप्रैल 2025 की है। उत्सव का माहौल था। माननीयों की गरिमामय उपस्थिति थी। शिलापट्ट में जितने महानुभाव के नाम हैं। सभी आदर और सम्मान के पात्र हैं।

सामने अशोक सम्राट के नाम से भवन है। ठीक इसी के सामने खाली परिसर में ये सभी शिलालेख पड़े हुए हैं। जिस दिन इन शिलालेखों का अनावरण किया गया था इसके ऊपर मखमली कपड़े थे। फूल और मालाएं भी थी लेकिन आज इस हाल में पड़ा है।

योजनाओं के विवरण का उल्लेख किया गया है इन शिलालेखों पर। योजनाओं के क्रियान्वयन में नगर निगम के कर्मचारियों से लेकर शीर्ष पदाधिकारियों और वार्ड पार्षद से लेकर महापौर की महत्ती भूमिका होती है। वैसे तो शिलालेख राजनीति का एक हिस्सा हुआ करते हैं। जिससे सरकार और नेताओं के कर्तव्यपरायण का उल्लेख मिलता है।

आज माखनलाल चतुर्वेदी जी की जिस रचना का जिक्र इस रिपोर्ट की शुरुआत में की गई है तो उनकी इस रचना के पीछे कहीं न कहीं उनके मन को जो फूल के प्रति आदर था, आज कुछ वैसा ही आदर इन शिलालेखों के प्रति है।