देवब्रत मंडल

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण में 11 नवंबर को गया जिले के सभी 10 विधानसभा क्षेत्र में वोट डाले जाएंगे। यहां जनसुराज ने दो सीटों पर अपने उम्मीदवार की घोषणा कर चुकी है लेकिन महागठबंधन और एनडीए गठबंधन की ओर से घोषणा होना इसलिए बाकी है कि अबतक(खबर लिखे जाने तक) सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर मंथन जारी है। फाइनल नहीं हो सका है। देर सवेर यह भी हो ही जायेगा।
बात गया शहर विधानसभा क्षेत्र की है। पिछली बार 2020 में एनडीए के उम्मीदवार भाजपा के डॉ प्रेम कुमार महागठबंधन के कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार अखौरी ओंकार नाथ उर्फ मोहन श्रीवास्तव को पराजित कर चुके हैं। इसके पहले भी मोहन श्रीवास्तव प्रेम कुमार से मात खा चुके हैं।
कांग्रेस और भाजपा दोनों ओबीसी पर विशेष फोकस करती नजर आ रही है। गया शहर विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो प्रेम कुमार ओबीसी कोटे से आते हैं। जिनके सामने दो बार मोहन श्रीवास्तव(अगड़ी जाति) से आते हैं। इन दोनों की राजनीति पिछड़े, अति पिछड़े और दलितों के इर्द गिर्द ही घूमती रहती है लेकिन चुनाव में कुछ अगड़ी जातियों की भूमिका कांग्रेस विरोधी हो जाती है।
सीट शेयरिंग और टिकट(पार्टी का सिंबल) दोनों का फैसला दिल्ली से होना है। सीट शेयरिंग जैसे ही फिट बैठ जाते हैं तो टिकट किसे दिया जाना है, ये भी फाइनल कर लिए जाएंगे। हालांकि गया जिले में चुनाव दूसरे चरण में है तो टिकट का फैसला देरी से भी लिया जा सकता है।
भाजपा के प्रेम कुमार हों या कांग्रेस के मोहन श्रीवास्तव। दोनों के साथ तीन टिकट महा विकट वाली स्थिति नजर आ रही है। प्रेम कुमार का भी यहां विरोध देखने को मिल रहा है और मोहन श्रीवास्तव का भी।
कांग्रेस से तीन लोगों के नामों की चर्चा है। एक मोहन श्रीवास्तव, दूसरा नैना देवी और तीसरा कुणाल कुमार। नैना देवी के साथ प्लस पॉइंट है कि यह महिला हैं और ओबीसी भी। कुणाल भी पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते हैं और रसूखदार भी। वहीं भाजपा की बात करें तो प्रेम कुमार के साथ सबसे प्लस पॉइंट है अबतक ये चुनाव नहीं हारे हैं और ओबीसी कोटे से आते हैं। इनके अलावा प्रशांत कुमार और मनीष पंकज कुमार भी दिल्ली में टिकट के लिए डेरा डाले हुए हैं।
यानी प्रेम कुमार और मोहन श्रीवास्तव। दोनों के साथ तीन टिकट महा विकट वाली स्थिति देखने को मिल रही है। बहरहाल महागठबंधन और एनडीए गठबंधन यही चाह रहा है कि टिकट उसी को ही दिया जाना चाहिए जो बाजी मार ले। हालांकि दोनों गठबंधन के समर्थकों की यही चाहत है कि बदलाव होने से नुकसान हो सकता है।