नीतीश कुमार चाह लें तो उपेंद्र कुशवाहा मुख्यमंत्री बन सकते हैं और भाजपा को सत्ता से…

Deobarat Mandal

देवब्रत मंडल

image editor output image291626117 17633155621944414062358629652882 नीतीश कुमार चाह लें तो उपेंद्र कुशवाहा मुख्यमंत्री बन सकते हैं और भाजपा को सत्ता से...
उपेंद्र कुशवाहा

बिहार की सत्ता में कब क्या हो जाए कहना मुश्किल है। समीकरण कई तरह के बनते बिगड़ते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों पर गौर करें और तोड़जोड की बात करें तो एक संभावना ऐसी भी नजर आ रही है कि यदि उपेंद्र कुशवाहा को नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में पेश करते हुए राज्यपाल के पास सरकार बनाने का दावा करते हैं तो भाजपा को बिहार में सत्ता में आने से रोक सकते हैं लेकिन ये आंकड़े हैं और संभावनाएं।

सीटों के गणित को समझें

जदयू 85+ रालोसपा 4+ राजद 25+ कांग्रेस 06+सीपीआई 1+ सीपीआई(एमएल) 1+ माकपा 1 को जोड़ कर देखते हैं तो 123 हो जाते हैं। जो सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्या है। वहीं भाजपा 89+लोजपा(आर)19+ हम(से) 5+ एआईआईएमएम 5+ इंडियन इनलकलुसिवे 1+बहुजन समाज पार्टी 1 को जोड़ कर देखते हैं तो कुल 120 सीट(विधायक) ही होते हैं। जिससे भाजपा सत्ता से दूर हो सकती है।

ऐसे में भाजपा की राजनीतिक दाव उल्टे पड़ सकते हैं

ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यदि एनडीए से नाता तोड़ कर बिहार में स्वयं को या उपेंद्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर पिछड़े, दलित, महादलित, मुस्लिम और वामपंथी दलों को साथ लेकर सरकार बनाने का दावा पेश कर देते हैं तो भाजपा की अपनी राजनीतिक दांव पेंच उल्टे पड़ सकते हैं। बिहार में भाजपा का मुख्यमंत्री बनाने का सपना इस राजनीतिक हिसाब से गलत साबित हो सकता है।
भले ही केंद्र की राजनीति में जदयू शून्य पर आ जाए उसकी फ़िकर जदयू फिर कभी कर ले सकती है।

पल्टी मारने की बातें सुनने के आदि हो चुके हैं


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर पलटी मारने का आरोप लगते आया है, इसकी चिंता वे नहीं करते हैं। वे जानते हैं कि बिहार की राजनीति कैसे कब और कहां करनी चाहिए। नीतीश कुमार बिहार ही नहीं वरन देश में एक ऐसे राजनीतिज्ञ हैं, जिसे विश्व की बड़े बड़े राजनीतिकार की सोंच यहां आकर ठहर जाती है।

बिहार और बिहारियों की चिंता करते हैं नीतीश कुमार


बिहार में विकास और बिहारियों की चिंता जितनी इन्हें है, शायद उतनी लालू प्रसाद यादव को या किसी रणनीतिकार को नहीं है। नीतीश कुमार बिहार और बिहारियों के लिए त्याग की प्रतिमूर्ति हैं, ये समझना होगा। अगड़ों, पिछड़ों, दलित, महादलित, अल्पसंख्यक आदि के कल्याण और इनके बेहतर भविष्य के बारे में जितनी समझ इनके पास है शायद ही देश के किसी राज्य के किसी दल के नेताओं के पास है। बिहार इनमें अपना भविष्य देखता है और बिहारी के बारे में इनकी सोच हर राजनीतिक दलों से काफी भिन्न है।

यदि ऐसा होता है तो एकसाथ कई निशाने साध ले सकते हैं

यदि उपेंद्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर सरकार बनाने का दावा पेश अन्य सहयोगी दलों के साथ(जिसके बारे में जिक्र किया गया है) पेश कर देते हैं तो एकसाथ कई निशाने साधने में नीतीश कुमार कामयाब हो सकते हैं।
राजनीति संभावनाओं का खेल है। हर पल स्थिति और परिस्थिति बदलती रहती है। कब क्या हो जाए कहना बड़ा मुश्किल है, क्योंकि बिहार में नीतीशे कुमार हैं।


आइए जानते हैं कि चुनाव के नतीजे क्या कहते हैं


बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों के नतीजे आ चुके हैं। राज्य की 243 सीटों में से सबसे ज्यादा बीजेपी ने 89 सीटें जीती हैं. वहीं सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड को 85 सीटें मिली हैं।एनडीए में शामिल चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास ) को 19 सीटें मिली हैं। जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) को पांच सीटें मिली हैं. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा चार सीटें जीतने में सफल रही है। राष्ट्रीय जनता दल का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। महागठबंधन का नेतृत्व कर रही पार्टी को सिर्फ 25 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। वहीं सहयोगी दल कांग्रेस को छह सीटें मिली हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन को दो सीटें मिलीं। जबकि असदुद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम पांच सीटें जीतने में कामयाब रही है। इंडियन इन्क्लुसिव पार्टी, माकपा और बहुजन समाज पार्टी को एक-एक सीट मिली है।

…और अंत में

Magadhlive की टीम बिहार के चुनाव और परिणाम को लेकर काफी अध्ययन किया है। चुनाव नतीजों पर नजर निरंतर नजरें रखते हुए अब सरकार बनने की दिशा में टीम कार्य कर रही है। टीम ने जो संभावनाएं बनती दिखी है उसी के आधार पर रिपोर्ट तैयार की है। बाकी आगे क्या हो सकता है, इस पर भी नजर बनाए रखेगी।

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