आरपीएफ ने सात वर्षों के दौरान ‘ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते’ के तहत 84,119 बच्चों को बचाया

Deepak Kumar
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✍️ देवब्रत मंडल

एक आम धारणा मन में लोगों की रहती है कि रेलवे सुरक्षा बल केवल रेल की संपत्तियों को सुरक्षा प्रदान करती है लेकिन ये अवधारणा पूरी तरह से सही नहीं है। रेलवे सुरक्षा बल रेल संपत्तियों की रक्षा के साथ रेल यात्रियों, उनके सामान से लेकर उनके साथ होने वाली हर तरह की परेशानियों को अपना समझ कर मानवीय मूल्यों की भी रक्षा करता है। अब तो इनका दायित्व इतना बढ़ गया है कि परिस्थिजन्य परेशान यात्रियों के परिवार को तो बाद में पता चलता है कि उनकी रक्षा के साथ साथ उन्हें नवजीवन प्रदान करने का काम आरपीएफ़ के जवान से लेकर शीर्षस्थ अधिकारी ने यात्रियों के साथ उनका व्यवहार कैसा होता है।
महाभारत में युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण ने जो गीतोपदेश दिए, उसमें एक वाक्य ‘तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व’ की व्याख्या की थी। रेलवे सुरक्षा बल के बैज(badge) में प्रमुखता से ‘यशो लभास्व’ लिखा होता है। जिसका अर्थ यह है कि- भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धभूमि(कुरुक्षेत्र) में कहा था- ‘तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व’। अर्थात हे अर्जुन ! जब तुमने यह देख ही लिया कि तुम्हारे मारे बिना भी ये प्रतिपक्षी बचेंगे नहीं, तो तुम कमर कसकर युद्ध के लिये खड़े हो जाओ और मुफ्त में ही यश को प्राप्त कर लो। इसका तात्पर्य है कि यह सब होनहार(होनी) है, जो होकर ही रहेगी और इसको मैंने तुम्हें प्रत्यक्ष दिखा भी दिया है। इन्हीं संकल्पों को साकार करते हुए पिछले सात वर्षों में, रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) ‘नन्हे फरिश्ते’ नामक ऑपरेशन में अग्रणी रहा है।

मिशन है इस ऑपरेशन का

यह एक मिशन जो विभिन्न भारतीय रेलवे जोनों में पीड़ित बच्चों को बचाने के लिए समर्पित है। पिछले सात वर्षों (2018-मई 2024) के दौरान, आरपीएफ ने स्टेशनों और ट्रेनों में खतरे में पड़े या खतरे में पड़ने से 84,119 बच्चों को बचाया है।

‘नन्हे फरिश्ते’ एक ऑपरेशन से कहीं अधिक है

यह उन हजारों बच्चों के लिए एक जीवन रेखा है जो खुद को अनिश्चित परिस्थितियों में पाते हैं। 2018 से 2024 तक का डेटा, अटूट समर्पण, अनुकूलनशीलता और संघर्ष क्षमता की कहानी दर्शाता है। प्रत्येक बचाव समाज के सबसे असुरक्षित सदस्यों की सुरक्षा के लिए आरपीएफ की प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है।

वर्ष 2018 में ‘ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते’ अभियान की हुई थी शुरुआत

वर्ष 2018 में ‘ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते’ की महत्वपूर्ण शुरुआत हुई। इस वर्ष, आरपीएफ ने कुल 17,112 पीड़ित बच्चों को बचाया, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं। बचाए गए 17,112 बच्चों में से 13,187 बच्चों की पहचान भागे हुए बच्चों के रूप में की गई, 2105 लापता पाए गए, 1091 बच्चे बिछड़े हुए, 400 बच्चे निराश्रित, 87 अपहृत, 78 मानसिक रूप से विक्षिप्त और 131 बेघर बच्चे पाए गए। वर्ष 2018 में इस तरह की पहल की तत्काल आवश्यकता को उजागर करते हुए ऑपरेशन के लिए एक मजबूत नींव रखी गई।

बढ़ते रहे इस अभियान के कदम

वर्ष 2019 के दौरान, आरपीएफ के प्रयास लगातार सफल रहे और लड़कों और लड़कियों दोनों सहित कुल 15,932 बच्चों को बचाया गया। बचाए गए 15,932 बच्चों में से 12,708 भागे हुए, 1454 लापता, 1036 बिछड़े हुए, 350 निराश्रित, 56 अपहृत, 123 मानसिक रूप से विक्षिप्त और 171 बेघर बच्चों के रूप में पहचाने गए।

कोविड के दौरान भी सेवार्थ लगे रहे

वर्ष 2020 कोविड महामारी के कारण चुनौतीपूर्ण था, जिसने सामान्य जीवन को बाधित किया और परिचालन पर काफी प्रभाव डाला। इन चुनौतियों के बावजूद, आरपीएफ 5,011 बच्चों को बचाने में कामयाब रही।
वर्ष 2021 के दौरान, आरपीएफ ने अपने बचाव कार्यों में पुनरुत्थान देखा, जिससे 11,907 बच्चों को बचाया गया। इस वर्ष पाए गए और संरक्षित किए गए बच्चों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिसमें 9601 बच्चों की पहचान भागे हुए के रूप में, 961 लापता के रूप में, 648 बिछड़े हुए, 370 निराश्रित, 78 अपहृत, 82 मानसिक रूप से विकलांग और 123 बेघर बच्चों के रूप में पहचाने गए।

वर्ष 2023 के दौरान 11,794 बच्चों को बचाने में सफल रही

वर्ष 2023 के दौरान, आरपीएफ 11,794 बच्चों को बचाने में सफल रही। इनमें से 8916 बच्चे घर से भागे हुए थे, 986 लापता थे, 1055 बिछड़े हुए थे, 236 निराश्रित थे, 156 अपहृत थे, 112 मानसिक रूप से विकलांग थे, और 237 बेघर बच्चे थे। आरपीएफ ने इन असुरक्षित बच्चों की सुरक्षा और उनकी अच्छी देखभाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2024 के पहले पांच महीनों में, आरपीएफ ने 4,607 बच्चों को बचाया

2024 के पहले पांच महीनों में, आरपीएफ ने 4,607 बच्चों को बचाया है। जिसमे 3430 घर से भागे हुए बच्चों को बचाया गया है, शुरुआती रुझान ऑपरेशन ‘नन्हे फरिश्ते’ के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता का प्रमाण देते हैं। ये संख्या बच्चों के भागने की लगातार जारी समस्या तथा उन्हें अपने माता पिता के पास सुरक्षित पहुंचने के लिए आरपीएफ के किए गए प्रयासों दोनों को दर्शाती हैं।

आरपीएफ का ऑपरेशन का दयारा लगतार बढ़ता ही रहा

आरपीएफ ने अपने प्रयासों से, न केवल बच्चों को बचाया है, बल्कि घर से भागे हुए और लापता बच्चों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता भी बढ़ाई है, जिसमे आगे की कार्रवाई और विभिन्न हितधारकों से समर्थन मिला। आरपीएफ का ऑपरेशन का दयारा लगतार बढ़ रहा है, रोज नई चुनौतियों का सामना कर भारत के विशाल रेलवे नेटवर्क में बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाने का प्रयास कर रहा है।

इस पोर्टल पर पूरी जानकारी है उपलब्ध

‘ट्रैक चाइल्ड’ पोर्टल पर बच्चों की पूरी जानकारी उपलब्ध रहती है। 135 से अधिक रेलवे स्टेशनों पर चाइल्ड हेल्पडेस्क उपलब्ध है।आरपीएफ मुक्त कराए गए बच्चों को जिला बाल कल्याण समिति को सौंप देती है । जिला बाल कल्याण समिति बच्चों को उनके माता-पिता को सौंप देती है।

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