हार न मानने की जिद, गोलियों से छलनी शरीर से ओलंपिक तक का सफर : कैसे एक फौजी बना देश का पहला पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता ?

Deepak Kumar
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✍️ दीपक कुमार

img 20240724 wa00647838071264290178603 हार न मानने की जिद, गोलियों से छलनी शरीर से ओलंपिक तक का सफर : कैसे एक फौजी बना देश का पहला पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता ?

गया, 24 जुलाई 2024: भारत के पहले पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता श्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर ने आज ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी (ओटीए) गया में एक प्रेरणादायक व्याख्यान दिया। उन्होंने अपने जीवन की कहानी साझा करते हुए कैडेट्स, अधिकारियों और स्टाफ को संबोधित किया।

img 20240724 wa00568642977087052059640 हार न मानने की जिद, गोलियों से छलनी शरीर से ओलंपिक तक का सफर : कैसे एक फौजी बना देश का पहला पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता ?

श्री पेटकर ने अपने संघर्षों और उपलब्धियों का वर्णन किया, जिसमें 1965 के भारत-पाक युद्ध में लगी नौ गोलियों से लेकर 1972 में हीडलबर्ग पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने तक की यात्रा शामिल है। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने कभी हार नहीं मानी और हर बाधा को पार करते हुए नई ऊंचाइयां छुईं।

जीवन का संघर्ष और उपलब्धियां:

श्री पेटकर का जन्म 1 नवंबर 1947 को महाराष्ट्र के सांगली जिले में हुआ था। बचपन से ही खेलों में रुचि रखने वाले पेटकर ने कुश्ती, हॉकी और एथलेटिक्स में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। भारतीय सेना में भर्ती होने के बाद, उन्होंने खुद को एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया।

1965 के भारत-पाक युद्ध में, श्री पेटकर को नौ गोलियां लगीं, जिनमें से एक आज भी उनकी रीढ़ की हड्डी में मौजूद है। लेकिन इस गंभीर चोट ने उनके हौसले को कम नहीं किया। दो साल के कठिन पुनर्वास के बाद, उन्होंने 1967 में महाराष्ट्र राज्य चैंपियनशिप में कई खेलों में स्वर्ण पदक जीते।

श्री पेटकर ने अपने संबोधन में कहा, “मैंने कभी भी किसी संकट या शारीरिक समस्या से हार नहीं मानी। हर बाधा को पार करते हुए मैं नित नई ऊँचाइयों को छूता गया।”

ऐतिहासिक उपलब्धि:

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श्री पेटकर की सबसे बड़ी उपलब्धि 1972 में जर्मनी के हीडलबर्ग में आयोजित ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक में आई, जहां उन्होंने भारत को पहला पैरालंपिक स्वर्ण पदक दिलाया। 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में उन्होंने विश्व रिकॉर्ड भी बनाया।

उनकी अन्य उल्लेखनीय उपलब्धियों में शामिल हैं:

  • स्टोक मैंडविले अंतर्राष्ट्रीय पैराप्लेजिक मीट में लगातार 5 वर्षों तक (1969-73) जनरल चैम्पियनशिप कप जीतना
  • 1970 में एडिनबर्ग कॉमनवेल्थ पैराप्लेजिक गेम्स में एक स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक जीतना
  • हांगकांग FESPIC खेलों में 50 मीटर तैराकी में विश्व रिकॉर्ड बनाना

सम्मान और पुरस्कार:

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श्री पेटकर को उनकी असाधारण उपलब्धियों के लिए कई सम्मान मिले हैं:

  • 1975 में महाराष्ट्र का सर्वोच्च खेल पुरस्कार, शिव छत्रपति पुरस्कार
  • 2018 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान

प्रेरणा का स्रोत:

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ओटीए गया के कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल परमजीत सिंह मिन्हास ने श्री पेटकर को एक स्मृति चिन्ह भेंट किया। उन्होंने कहा, “श्री पेटकर का जीवन हमारे कैडेट्स के लिए एक जीवंत उदाहरण है। उनका संघर्ष और सफलता की कहानी हमें सिखाती है कि कठिनाइयों से कभी हार नहीं माननी चाहिए।”

श्री पेटकर के जीवन पर आधारित फिल्म “चंदू चैंपियन” में अभिनेता कार्तिक आर्यन ने उनका किरदार निभाया है, जो उनकी कहानी को एक नई पीढ़ी तक पहुंचा रही है।

अपने संबोधन के अंत में श्री पेटकर ने कहा, “जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, कभी भी थक कर रुकना नहीं चाहिए। निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। यही सफलता का मंत्र है।”

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे, जिन्होंने श्री पेटकर के जीवन की प्रेरक कहानी को सुना और उनसे सीख ली। उनका जीवन आज की पीढ़ी के लिए एक प्रेरणास्रोत है, जो दिखाता है कि दृढ़ संकल्प और अटूट साहस से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

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