देवब्रत मंडल
कहते हैं कि कुंभ मेले में बिछड़े हुए लोग मिल जाते हैं या कई लोग बिछड़ भी जाते हैं। ये बात सार्थक होते देखा गया। बिहार के सीतामढ़ी की रहने वाली चंदर देवी(65) पति नंदकिशोर मंडल कुंभ स्नान के लिए अपने कुछ लोगों के साथ प्रयागराज में आस्था की डुबकी लगाने आई थीं। दुर्भाग्य हुआ कि अपनों से मेले में ही बिछड़ गईं। चंदर देवी किसी तरह प्रयागराज जंक्शन पर पहुंच तो गई लेकिन इसे पता नहीं चल रहा था कि वह अपने घर कैसे पहुंचे।
यहीं से कहानी ने नया मोड़ ले लिया। आंखों में आंसू लिए अपनों से बिछड़ने का गम सता रहा था। इसी भीड़ में दरभंगा के रहनेवाले नवल किशोर, गौरव कुमार एवं नीतीश कुमार थे, जो अपने तीन अन्य साथियों से बिछड़ गए थे। इन तीनों को दरभंगा जाना था तो प्लेटफार्म पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। नवल किशोर ने बताया कि सीतामढ़ी की चंदर देवी को रोते बिलखते हुए देखा तो पूछ बैठे कि कहां जाना है। चंदर देवी ने बताया कि सीतामढ़ी। इसके बाद दरभंगा के रहने वाले ये तीनों युवक चंदर देवी को कुंभ स्पेशल ट्रेन में अपने साथ बिठा लिया। लेकिन युवकों को नहीं पता था कि महिला को सीतामढ़ी जिले में कहां इनका घर है और परिवार कौन हैं। नवल ने बताया इसी ट्रेन में साथ सफर कर रहे गया के लोको कॉलोनी के रहनेवाले अभिषेक का परिवार प्रयागराज से पवित्र स्नान कर लौट रहे थे।
इन सभी युवकों ने चंदर देवी से बात कर पति का नाम, बेटे का नाम,गांव, थाना, पंचायत का पता कर लिया लेकिन कैसे परिवार के लोगों से संपर्क किया जाए, तरकीब निकाल लिए।
इंटरनेट का सहारा लिया। गूगल पर गांव, पंचायत, मुखिया, वार्ड सदस्य का पता करने के लिए सीतामढ़ी जिले के एक साइबर कैफे से रुद्रा साइबर जंक्शन, विशुनपुर से संपर्क किया। यहां से वार्ड 15 के सदस्य सुनील कुमार से संपर्क हुआ। वार्ड सदस्य ने वहां के एक विद्यालय के शिक्षक से वीडियो कॉल पर बात करवाया। जिन्होंने चंदर देवी को पहचान कर उनके पौत्र विपीन से वीडियो कॉल पर बात कराया। यहां बता दें कि कुम्हरा विशुनपुर जालिम सिंह टोला का एक गांव है। जो डुमरा थाना अंतर्गत है। इसके बाद चंदर देवी की आंखों से बहते हुए बिछड़ने के गम में बहते आंसू खुशियों के आंसू में बदल गए। ये सारा वाक्या चलती ट्रेन में हुआ। जिस कोच में इतना सब कुछ हो रहा था। दरभंगा के रहने वाले नवल, नीतीश, गौरव और गया के रहनेवाले अभिषेक ने बताया कि महाकुंभ स्नान का फल(आशीर्वाद) ऊपरवाले ने हम सभी को साक्षात दर्शन दिए। जो बिछड़ गईं चंदर देवी के रूप में थीं। कोच में बैठे अन्य सभी यात्री यही कह रहे थे कि बिछड़े को मिलाना भी एक सेवा(धर्म) ही है।